Page 98 - ISS Profectus E Magazine
P. 98

सपना
                                                                                           कह  भी जाऊ, कह  भी आऊ,
                                                                                                                     ँ
                                                                                            मुझ पर नह   कसी का जोर।
                                                                                               आँख खुली हो या हो बंद,

                                                                                                     दख मुझ सभी जन।
                                                                                                       े
                                                                                                                      े

                                                                                            बूझो तो जानो म   "सपना",
                                                                                                                                 ँ

                                                                                                                         े
                                                                                                         े
                                                                                                  चाह ना चाह लग अपना।
                                                                                                                                 ूँ
                                                                                          अमीर भी दख और दख गरीब,
                                                                                                                 े


                                                                                                                                    े
                                                                                                                          े
                                                                                                                                  ूँ
                                                                                               मृगतृ णा जैस लग करीब।
                                                                                             पल म हँसाए, पल म  लाए,


                                                                                               पल म तुमको पंख लगाए।

                                                                                    गर तुम करोग  ढ़  न य और  वचार,
                                                                                                               े
                                                                                                                                   े
                                                                                            सपन  को द पाओग आकार।
                                                                                                                   े
                                                                                     By Mohammed Amaanuddin VII B









                                                                                                                       97
   93   94   95   96   97   98   99   100   101   102   103