Page 89 - ISS Profectus E Magazine
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संपादक क  कलम स
                                                                                                                                                      े
                                                                                                    मु य संपादक
                                                                                                             अनी पटल
                                                                                                                            े
                                                                                      हर कोई रचना मकता स भरा ह। उ ह बस अपनी
                                                                                                                       े
                                                                                                                                ै

                                                                                                                           े
                                                                                    रचना मकता को    करन का तरीका खोजन क
                                                                                                                                                    े
                                                                                               ै
                                                                                  ज रत ह। यह प  का  व ा थ य  को एक मंच दती ह।
                                                                                                                                                   े
                                                                                                                                            े
                                                                                    ह द  भाषा क  संपादक य ट म क  ओर स हम अपन

                                                                                    व ालय क   धानाचाया  ीमती सं चता वमा जी का                             ै े

                                                                                                              े
                                                                                                                                     े
                                                                                    आभार    करत ह  य  क उ ह न इस प  का क                                े

                                                                                                                 े
                                                                                  मा यम स  व ा थ य  क रचना मक कौशल को उजागर
                                                                                               े
                                                                                                                         े
                                                                                        े
                                                                                 करक  े रत  कया। हम अपन पय वे क  ी यशवीर  स ह
                                                                                  जी और अ य  ह द   श क  को ध यवाद दना चाहत ह
                                                                                                                                                        े
                                                                                                                                            े
                                                                                   ज ह न इस प  का को बनान क  लए हमारा माग दश न
                                                                                                                             े
                                                                                            े
                                                                                                                          े
                                                                                                                                े
                                                                                    कया। हम उन सभी  व ा थ य  क  यास  क   शंसा
                                                                                                                                                  े

                                                                                                      े
                                                                                 करत ह  ज ह न अपन भाव  को कलमब  करक अपनी
                                                                                        े
                                                                                                               े
                                                                                          रचनाएँ प  का म  का शत करन हेत द  ।
                                                                                                                                       े
                                                                                                                                            ु

                                                                                                                       88
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